2013 में केदारनाथ में क्या हुआ था?

देवभूमि यानी “देवताओं के स्थान” में से एक स्थान, जो कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में स्थित केदारनाथ धाम है। यह भगवान शिव को समर्पित एक प्रमुख मंदिर है। यह मंदिर सबसे पवित्र जगहों में से एक है। केदारनाथ धाम मंदिर चारधाम यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लेकिन जून 2013 में केदारनाथ में एक भयानक प्राकृतिक आपदा आई थी, जिसने पूरे भारत को चौंका दिया। इसमें लाखों लोगों ने अपने सपनों को मलबे में दबते हुए देखा और कई लोगों ने अपनी जान गंवाई।

क्या था आपदा का कारण

14 मई 2013 को केदारनाथ धाम के कपाट खुल गए थे और श्रद्धालु पूरी भक्ति के साथ दर्शन कर रहे थे। कपाट खुलने के बाद यात्रा अच्छी चल रही थी, लेकिन अचानक 16 और 17 जून 2013 को उत्तराखंड में अधिक बारिश होने लगी। अत्यधिक बारिश के कारण भूस्खलन और ग्लेशियर पिघलने लगे, जिससे स्थिति और गंभीर हो गई। केदारनाथ के ऊपर चोराबाड़ी झील फट गई, जिसका सारा पानी और मलबा मंदाकिनी नदी में आ गया। इसकी वजह से केदारनाथ में भयानक बाढ़ आ गई। बाढ़ के तेज बहाव की वजह से रास्ते में आने वाले गाँव, पुल और सड़कें तहस-नहस हो गईं।

आपदा का प्रभाव

 

2013 की केदारनाथ आपदा में 5000 से अधिक लोग मारे गए और हज़ारों लोग ग़ायब हो गए, जिनका आज तक पता नहीं चल पाया। अत्यधिक बारिश और बादल फटने के कारण चोराबाड़ी झील का पानी बढ़ गया। वह सैलाब की रफ़्तार इतनी तेज थी कि अपने साथ मलबा और पहाड़ के बड़े-बड़े पत्थर बहाकर ला रहा था। इसके सामने आने वाले होटल, गाँव, धर्मशालाएं, घर — सब तहस-नहस हो गए। लोगों का करोड़ों का नुकसान हुआ। कई महीनों तक कामकाज ठप रहा, जिससे रोज़ी-रोटी पर भी असर पड़ा। साथ ही बादल फटने से वन्यजीवों को भी भारी नुकसान हुआ। लोगों के मन में यात्रा को लेकर डर बैठ गया, जिसकी वजह से कई महीनों तक यात्रा बंद रही।

सरकार और सैन्य मदद

केदारनाथ आपदा के समय भारतीय सेना ने “ऑपरेशन सूर्या होप” चलाया, जिसमें हज़ारों सैनिकों ने हेलीकॉप्टर, राफ्ट, रस्सियों और ऊँचाई पर चढ़ाई कर हिमालयी इलाक़ों में फँसे लोगों को बचाया।

वहीं वायुसेना ने “ऑपरेशन राहत” चलाया, जो कि भारत का सबसे बड़ा बचाव अभियान था। NDRF, ITBP, SDRF और BRO ने बड़ी-बड़ी चट्टानों को हटाकर रास्ते खोले, जो कि एक अहम काम था। रास्ते खुलने से लोगों को बहुत राहत मिली।

सरकार ने भी हज़ारों लोगों को भोजन और चिकित्सा सुविधा दी, और मृतकों के परिजनों को आर्थिक सहायता प्रदान की।

आपदा का सबक

 

1.प्राकृतिक चेतावनी:

केदारनाथ के आसपास के हिमालयी क्षेत्र में जंगलों की कटाई और नदी किनारे अवैज्ञानिक विकास कार्य हो रहे थे। लोगों ने अपनी कमाई के लिए एक ही जगह पर बहुत से होटल, धर्मशालाएं और दुकानें खोल दी थीं, जिसकी वजह से प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा था। यही कारण था कि बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं अधिक होने लगीं और बारिश का पानी रुकने के बजाय तेज़ी से बह गया।

सबक क्या है?

बिना वजह पेड़ों को न काटें।

हिमालय क्षेत्रों में पर्यावरणीय आकलन रिपोर्ट (EIA) के बिना कोई निर्माण कार्य न हो।

लोगों को जागरूक करना ज़रूरी है कि पेड़ काटने से उनका ही नुकसान होता है।

अगर हमने इसे अनदेखा किया तो भविष्य में आपदा और भी बढ़ सकती है।

 

2.यात्रियों के लिए प्रबंधन की आवश्यकता

हर साल उत्तराखंड में हज़ारों यात्री चारधाम के लिए आते हैं और सबसे ज़्यादा यात्री एक ही समय पर केदारनाथ यात्रा के लिए पहुँचते हैं। इससे तीर्थ यात्रियों की संख्या एक साथ बढ़ जाती है और सरकार द्वारा इस पर कोई ठोस काम नहीं किया जा रहा। इसी वजह से आपदा के समय हज़ारों लोग एक ही जगह फँस गए और बचाव कार्य कठिन हो गया।

सबक क्या है?

सरकार को तीर्थयात्रियों का समय नियंत्रित करना चाहिए।

एक ही दिन में सीमित संख्या में यात्रियों को दर्शन की अनुमति दी जाए।

यात्रा के दौरान मौसम और स्वास्थ्य सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया जाए।

अंत में….

केदारनाथ आपदा सिर्फ़ एक प्राकृतिक घटना नहीं थी, बल्कि यह लोगों की लापरवाही और प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा थी। अगर हमने समय रहते प्रकृति का संतुलन नहीं बनाया, तो यह घटनाएं बार-बार होती रहेंगी। हमें प्रकृति का सम्मान करना होगा और विकास के साथ-साथ पर्यावरण का भी ध्यान रखना होगा।

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